मानपुर के वस्त्र उद्योग पर पड़ा बंगाल के लॉकडाउन का प्रभाव, महंगा धागा ने भी प्रभावित हो रहा धंधा
बिहार का मैन चेस्टर कहलाने वाला मानपुर पटवा टोली के उद्योग धंधा को बंगाल के लाक डाउन ने काफी प्रभावित किया। यहां तैयार होने वाला विभिन्न तरह का वस्त्र दूसरे प्रदेश में जाना बंद हो गया। जिसके कारण बिहार का मैन चेस्टर कहलाने वाला मानपुर पटवा टोली के उद्योग धंधा को बंगाल के लाक डाउन ने काफी प्रभावित किया। यहां तैयार होने वाला विभिन्न तरह का वस्त्र दूसरे प्रदेश में जाना बंद हो गया। जिसके कारण उद्योग संचालकों के गोदाम में विभिन्न तरह के वस्त्र भरे हैं। -
August 03, 2021 जागरण संवाददाता, मानपुर (गया)। बिहार का मैन चेस्टर कहलाने वाला मानपुर पटवा टोली के उद्योग धंधा को बंगाल के लाक डाउन ने काफी प्रभावित किया। यहां तैयार होने वाला विभिन्न तरह का वस्त्र दूसरे प्रदेश में जाना बंद हो गया। जिसके कारण उद्योग संचालकों के गोदाम में विभिन्न तरह के वस्त्र भरे हैं। पहले के अपेक्षा उत्पादन में भी कमी आई है। जिसका प्रभाव बुनकर मजदूरों पर काफी पड़ा।
12 घंटा रहता उद्योग बंद
पटवा टोली में करीब दस हजार पवार लूम है। जिसपर विभिन्न तरह के वस्त्र चौबीस घंटा तैयार होते रहते थे। लेकिन अभी 12 घंटा ही चल रहा हैं। जिसपर गमछा के अलावे अन्य तरह की वस्त्र करीब पचास हजार पीस प्रतिदिन तैयार होते थे। जिसकी बिक्री बिहार के अलावा दूसरे प्रदेश में होती थी। पटवा टोली में तैयार गमछा एवं अन्य वस्त्रों की मांग बंगाल में काफी थी। यहां से प्रतिदिन एक ट्रक विभिन्न तरह के वस्त्र बंगाल जाते थे। लेकिन बंगाल में लॉक डाउन के कारण पटवा टोली से वस्त्र जाना बिल्कुल ठप हो गया है। जिसका प्रभाव पटवा टोली के उद्योग धंधा पर काफी पड़ा।
धागा की बढ़ती कीमत का असर
पटवा टोली में विभिन्न तरह के वस्त्र तैयार करने के लिए तमिलनाडु एवं पंजाब से धागा मंगाया जाता है। यहां प्रतिदिन एक ट्रक धागा आते हैं। 10 सं 32 नंबर तक धागा की खपत है। उद्योग संचालकों का कहना है कि दस रूपए प्रतिकिलो धागा के मूल्य में वृद्धि हुई है। जिसका प्रभाव उद्योग धंधा पर काफी पड़ा। महंगे दर पर धागा आने के वजह वस्त्रों के उत्पादन करने में खर्च अधिक पड़ रहे हैं। उसके अनुसार बिक्री नहीं होते हैं।
महाजनों का सहयोग बंद
पटवा टोली में करीब पांच सौ पावर लूम इकाई के मालिकों के पास पूंजी का अभाव है। जो वड़े-बडें उद्योग संचालकों से उधार धागा लेकर वस्त्र बनाते हैं। इसके एवज में उन्हेंं कुछ अधिक पैसे देने पड़ते हैं। जो छोटे-छोटे उद्योग संचालकों को काफी महंगा पड़ता है। तैयार वस्त्रों की बिक्री नहीं होने से महाजनों के पास बकाया पैसा काफी हो गया है। जिसके कारण उन्हेंं धागा नहीं मिल पा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर वस्त्रों की जो बिक्री होती उसी से कुछ धागा खरीदकर दो-चार घंटा उद्योग चलकर वस्त्र बना रहे हैं।
क्या कहते बुनकर नेता
बुनकर नेता दुखन प्रसाद पटवा का कहना है कि बंगाल के लॉक डाउन का प्रभाव पटवा टोली में काफी पड़ा। यहां का तैयार वस्त्र बंगाल जाना बंद है। जिसके कारण वस्त्रों के उत्पादन में काफी कमी आई है। 24 घंटा चलने वाला उद्योग 12 घंटा ही चल रहा है, जो धागा पहले 450 रपए किलो मिलते थे वो आज 500 रूपए किलो हो गया है। जिसका असर उद्योग पर काफी पड़ा है।
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